देश की राजधानी 'दिल्ली'. लोग बड़े बड़े सपने लेकर यहां आते हैं। मैं भी उन्हीं में से एक हूं। भारतीय जनसंचार संस्थान की कक्षाओं में बैठने और पढ़ाई करने का उत्साह लिए मैं भी दिल्ली की ओर निकल पड़ा। आज मुझे दिल्ली आए लगभग एक महीने हो गए हैं। आज मैं दिल्ली में गुजारे इन एक महीने का अपना अनुभव बताऊंगा
पहली बार घर से बाहर पढ़ने निकला :
गांव का एक लड़का, जो कभी घर से दूर नहीं निकला, निकलते हुए बार बार आंखें नम हो रही थी, लेकिन खुद को किसी तरह संभालकर निकल पड़ा दिल्ली की ओर। 16 घंटे की ट्रेन की सफर के बाद दिल्ली पहुंचा। मेरे एक दोस्त मुझे लेने स्टेशन आए। फिर मैं पहली बार दिल्ली के मेट्रो में चढ़ा और एक अलग सी खुशी थी दिल में। लगभग एक घंटे में हम आईआईएमसी के नजदीक बेर सराई पहुंचे और फिर यहां हमारे दोस्तों ने हमें कमरा खोजने में मदद की और मैंने एक छोटा सा कमरा लिया।
आईआईएमसी की पहली यात्रा :
जिस संस्थान में पढ़ने का सपना लिए मैं दिल्ली आया था, आज वो दिन आ गया जब मैं पहली बार उस संस्थान में पहुंचा। एक सपने के सच होने जैसा लग रहा था। मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था। जितना सोचा था उससे कहीं ज्यादा बड़ा कैंपस था। पूरा कैंपस घुमा, बहुत सारी फोटोज खींची। आईआईएमसी की लाइब्रेरी में गया, किताबें और मैगजीन पढ़ी और एक किताब लेकर भी आया।
हमें दिल्ली में रहते हुए 15 दिन बीत गया। इस बीच में खूब मेट्रो की यात्रा की, दोस्तों संग दिल्ली घूमने गया, बिलकुल खुश था। इसी बीच कोरोना के मामले बढ़ने लगे और हमारा कॉलेज फिर से एक बार बंद हो गया।
दिल्ली आकर क्या पाया ?
दिल्ली आने के बाद में अपने गुरुजनों से मिला, अपने सीनियर से मिला, दिल्ली के लोगों से मिला, लेकिन सबसे बड़ी चीज जो दिल्ली आकर मुझे मिला वो थें हमारे 'सहपाठी'. सहपाठियों ने कदम कदम पर मेरा साथ दिया। खुद पे विश्वास करना सिखाया। मेरी हर गलती को सुधारा। उन्होंने हमेशा व्यवराहिक ज्ञान को, किताबी ज्ञान से उपर रखा और मुझे भी ऐसा ही करने की सलाह दी। कोरोना की लहर अब भी बढ़ रही है लेकिन अब दिल्ली और दोस्तों से लगाव हो गया है। अब तो घर की याद भी नहीं सताती। उन सभी दोस्तों का शुक्रिया जिन्होंने मुझे याद दिलाया कि मैं 'मैं' हूं।
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